Sad Darshan – Hindi (सत्-दर्शन)

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Sad Darshan – Hindi (सत्-दर्शन)

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Description

भगवान् रमण महर्षि की यह रचना सर्वप्रथम तमिल में ‘उल्लदु नार्पदु’ अर्थात् ‘सत् पर चालीस छंद’ नाम से प्रकाशित हुई। महर्षि ने एक बार बीस तमिल छंदों की रचना की। श्री मुरुगनार ने परामर्श दिया कि परम्परागत चालीस का युग्म बनाने के लिए भगवान् को बीस छंद और लिखने चाहिए। इस प्रकार से ‘सत् पर चालीस छंद’ नाम की इस पुस्तक की रचना हुई। भगवान् की मौलिक रचना की यह व्याख्या, भगवान् के उपदेशों पर स्पष्ट प्रकाश डालती है। यह दृष्टान्त ग्रन्थ में सन्निहित अंतर्दृष्टि पर प्रकाश डालता है :

आत्मा को ही, स्वरूप-स्थित परमात्मा कहा गया है। वेद और उपनिषद्, उसे ही ब्रह्म कहते हैं। अध्यात्म तत्ववेत्ता उसे परमतत्व या वस्तु का नाम देते हैं। दार्शनिक उसे शाश्वत सत् मानते हैं। किन्तु उसमें सदैव निवास करने वाले उसे सच्चिदानन्द के नाम से पुकारते हैं। वह सत् वस्तु है, वह स्वयं चैतन्य है तथा आनन्द रूप है। वस्तुतः वह वस्तु ही हर अस्तित्व का स्रोत है। वह स्रोत जिसका न तो आदि है और न ही अंत, इसीलिए उसे अनन्त भी कहा गया है। वह जन्म एवं मृत्यु से रहित है, इसलिए अजन्मा है। उसका कभी नाश नहीं होता, इसलिए अविनाशी है। काल की तीनों अवस्थाओं – भूत, वर्तमान एवं भविष्य में विद्यमान होते हुए भी इन तीनों से परे कालातीत तथा चेतना की तीन अवस्थाओं – जाग्रत, स्वप्न एवं सुषुप्ति में होते हुए भी तीनों से परे की अवस्था – तुरीय है

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